Tuesday 17 July 2012

जख्म


ख्वाब सजते थे,स्वत्व का एहसास लिए
ज़िन्दगी  का एहसास था मीठे पलों में|
प्रेम की तितली जाने कहाँ गयी
मुझसे हर जज्ब औ हर आस लिए|

आगोश तेरी,मेरा मक्का मदीना
तेरे क़दमों में ही जन्नत थी बसी
चीखते हर अश्क,बेआवाज़ से,
बहार भी लाए पतझड़ महीना|

जम  गए हर लव्ज़ दिल में,
प्यार की  तपिश से जो दूर हुए,
जाऊं कहाँ खुद की लाश लिये
बेमोल ये अनमोल जख्म,बेज़ार तेरी महफ़िल में|

स्वाति वल्लभा राज....

8 comments:

  1. क्या बात है

    वाह!

    ReplyDelete
  2. वाह...
    बहुत सुन्दर.

    अनु

    ReplyDelete
  3. कोमल भाव लिए संवेदनशील रचना...
    बहुत बेहतरीन

    ReplyDelete
  4. बहुत मार्मिक भाव संजीदा करती रचना बहुत खूब

    ReplyDelete
  5. अनमोल जख्म...सुन्दर लिखा है..

    ReplyDelete
  6. लव्ज़ - लफ्ज़
    बेमोल ये अनमोल.....बेमोल या अनमोल कोई एक ही हो सकता है.....बाकि सुन्दर है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेमोल ये अनमोल ही कहना चाहा है...मेरी लिए अनमोल और सामने वाले के लिए बेमोल,जिसकी कद्र नहीं उसकी दुनिया में......:) लव्ज़ और लफ्ज़ के सुधार के लिए धन्यवाद...:)

      Delete