Tuesday 25 August 2015

सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है

मौत के लिए चित्र परिणाम


सूरत-ए -आम और सीरत-ए -मामूली निकले हम तो क्या
हँस के ज़रा कर दो बिदा,
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है ।
सुकून का हर गुल रखा तुमसे दूर हमने 
नालायकी के चादर में लिपटी,
आज हमारी औकात निकली है ।
दोज़ख सी ज़िंदगी का कर दिया था बसेरा जहां
ख़ुदा के दर से आज तुझको
प्यारी सी सौगात निकली है ।
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है।
स्वाति वल्लभा राज

Wednesday 19 August 2015

तेरे इश्क़ में हम शहर बने

रविश जी के '' इश्क़ में शहर होना'' पढ़ने के बाद 
''इश्क़ में कहीं ताज़ और कहीं महल बने
कहीं अनकहे बोल और कहीं ग़ज़ल बने
सदियाँ भी कम पड़ी,और सिर्फ कहीं पहर बने 
हीर मजनूँ ना सही, तेरे इश्क़ में हम शहर बने '…
स्वाति वल्लभा राज

Friday 7 August 2015

बलात्कार

rape के लिए चित्र परिणाम

नहीं दिखा तुम्हे मेरा दर्द,
मेरी पीड़ा और मेरा डर 
मेरे घुटते शब्दों के साथ 
मेरा मरता वजूद
करते गए तुम अनदेखा । 
दिखे तुम्हे सिर्फ मेरे दो उभार 
जो  सींचते है सृष्टि का आधार 
पर तुम्हारे लिए तो वो थे 
गुलाब के फूल ,मखमल में लपेटे 
रौंदते गए जिसे तुम ,
और दिखा तुम्हे 
अपनी मर्दानगी साबित करने का द्वार 
वो द्वार जो नयी संरचना को जन्म देती है 
उसमे तुम रचते गए 
कलंक, घृणा ,मद |
तिस पर भी जी नहीं भरा 
तो नोच खसोट दिया मेरा जिस्म ,
रक्त रंजीत मेरा शरीर,आत्मा और अस्तित्व 
पड़े रहे निढाल,
और अट्टहास करता शब्द ''बलात्कार '' 

स्वाति वल्लभा राज 

Tuesday 4 August 2015

मनुष्य



बेहयाई में नहायी तुम्हारी निगाहें 
बेशर्मी में लिपटी तुम्हारी सोच 
''अहम् '' में सिमटा सम्पूर्ण  वजूद 
निकृष्ट से भी गिरे कर्म 
और हसास्यपद विचार ''मनुष्य '' होने का 

स्वाति वल्लभा राज