Tuesday 27 October 2015

बेशक्ल ख्वाइशें

हर नुक्कड़ चैराहे पे टंगी 
मांस के लोथड़ों सी 
हमारी मृत संवेदनायें  
और तिस पर मुज़रा करती
हमारी बेशक्ल ख्वाइशें 
कंकाल सी  खोखली आदमियत 
हम पर अट्टहास करती है । 

स्वाति वल्लभा राज 

Monday 26 October 2015

गाय- धर्म और राजनीति से ऊपर

बचपन में  जो विद्यालय  और परिवार के बाद निबंध लिखना सीखा था तो वो गाय थी| तब शुरुआत कुछ यूँ हुआ करती थी- ‘गाय एक चौपाया पालतू जानवर है जिसे माँ भी कहते हैं’| आचार्य जी से जब पूछा  कि माँ क्यों तो उम्र के हिसाब से समझाया क्योंकि गैया का दूध पीकर हीं तो बड़ी हो रही हो ना|
बचपन गया| गाय का निबंध गया| फिर दिखने लगा –  ‘गाय माँ या माँस’ | ‘गाय की राजनीति , गाय पर राजनीति’ |मैं ये नहीं जानती कि गाय मे कितने देवता का वास है |मगर हाँ ,आज धर्म और राजनीति से ऊपर उठ कर इस विषय को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की जरुरत है |
एक गाय जिसने दूध देना बंद कर दिया हो उसे अमूमन  ६-७ हज़ार में बेंच दिया जाता है| मगर दूध ना देने वाली गाय भी हर महीने इतना  गोबर और गो मूत्र देती है जिससे विभिन्न माध्यम से ८-९ हज़ार हर महीने कमाया जा सकता है| समझने की जरुरत है कैसे?गोबर से बना प्राकृतिक खाद ज़मीं और पैदावार के लिये हर लिहाज़ में केमीकल खाद और यूरिया से बेहतर है| इससे ज़मीं की नमी ५०% तक बढती है इसके आलावा फसल कभी भी हानिकारक तत्व नहीं सोखते जिसको खाने से कोई हानि हो| चिड़ियों की  कई प्रजातियों पर रिसर्च से पता चला है कि उनके अंडे निषेचन से पहले हीं फुट जा रहे है और उनकी प्रजाति पर खतरे की घंटी बज रही है| मछलियों पर भी इनका काफी विपरीत प्रभाव है| और मनुष्यों में कई बीमारियों की भी वजह बन रही जिसमें पेट की बीमारियाँ मुख्यतः है|
गोबर गैस के रूप में एक प्राकृतिक ईंधन उपलब्ध है जो सी. एन.जी. को रिप्लेस कर सकती है और घरेलू ईंधन के रूप में भी उपयोग में आनी शुरू हो गयी है| कार की कंपनी टोयोटा इसे कार इंधन के रूप में लाने के लिये  प्रोजेक्ट पर काम कर रही| अमेरिका और यूरोप में इसकी शुरुआत  भी हो चुकी है|
हरियाणा में एक पायलट  प्रोजेक्ट चल रहा जिसके अंतर्गत इससे निकलने वाले ९५-९६% मीथेन का उपयोग बायो इंधन के रूप में घरेलू और छोटे मोटे ढाबों पर किया जने लगा है| हरियाणा में हीं लगभग ११०० बिना दूध देने वाली गायों की एक ऐसी गोशाला है जहाँ गो मूत्र और गोबर से सालाना लगभग साधे तीन करोड का टर्न ओवर होता है और जिसने १०० लोगों को रोजी रोटी दे रखी है|
इसके अलावा बायो वाटर का कांसेप्ट भी सामने आया है जिसमें गोबर को पानी के साथ मिलाकर मायक्रोबली ट्रीटेड पानी सिंचाई में काम आता है| जो निःसंदेह फसल के उत्पादन के लिये जरुरी है|
इंडियन एक्सप्रेस की हवाले से चाइना ने ८ अप्रैल २००९ को ऐसे दवाई की पेटेंट कराई है जिसमे गोमूत्र है और कैंसर के इलाज़ में उपयोगी साबित हो रही|
टाईम्स ऑफ इंडिया के अनुसार अमेरिका अब तक ४ ऐसी दवाएं पेटेंट करा चुका है जिसे ‘’कामधेनु अर्क’ नाम से राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ के अनुसंधान केन्द्र और National Environmental Engineer Research Institute (NEERI) ने मिलकर बनाया| इस प्रयोग के अनुसार री - डिस्टिल्ड गोमूत्र में वो औषधीय गुण होता है जो DNA को oxidative  डैमेज से बचाता है जो कैंसर का कारक होता है|
आयुर्वेद में पेट सम्बन्धी कई बीमारियों के इलाज़ में गोमूत्र का उपयोग होता है|
एक नज़र दौडाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के  नज़र से भी| जापानी अध्ययन के अनुसार एक किलो बीफ पकाने में ३६ किलो  मात्रा में निकलती है  जितना २५० किलोमीटर यूरोपियन कार चलाने में ग्रीन हाउस गैस निकलती है| ये कोई मामूली मात्रा नहीं है|
इन पहलूओं पर गौर करके विवेक उपयोग करने की जरुरत है| धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर बहुत से विषयों को अन्य दृष्टिकोण से भी परखने की जरुरत है|
स्वाति वल्लभा राज



Wednesday 14 October 2015

रजस्वला ​ धर्म और कर्म कांड


लगभग हर धर्म में मासिक धर्म के समय स्त्रियां पूजा पाठ से अलग रहती हैं| हिंदू धर्म में इसके अलावा भी काफी चीजें वर्जित रहती हैं| जैसे आचार नहीं छूना है, पौधों को पानी नहीं देना, नीचे चटाई पर सोना, रसोईघर से दूर रहना आदि| मतलब स्नान करके ‘’शुद्ध’’ होने तक स्त्रियां अछूत रहती हैं| 

‘भविष्यत पुराण’ के ‘’ऋषि पंचमी ‘’ कथानुसार सुमित्र नाम का एक ब्राह्मण था उसकी पत्नी का नाम जयश्री था। मासिक धर्म के समय भी भोजन बनाकर खुद खाने और अपने पति को खिलाने की वजह से जन्म में जयश्री को कुत्ते और ब्राह्मण को बैल के रूप में जन्म लेना पड़ा |

भागवत पुराणानुसार देव राज इंद्र पर ब्रम्ह ग्यानी गुरु के ह्त्या का पाप लगा|वो इस पाप के बोझ को सह नहीं पा रहे थे तो जल,पृथ्वी,पेड़-पौधों और स्त्री को अपने इस ब्रम्ह ह्त्या के पाप का बोझ एक-एक चौथाई बाँट दिया| इन पाप के वहाँ से सबमे नाकारात्मक बदलाव आया परन्तु साथ मे इंद्र ने वरदान भी दिया सबको| स्त्रियों में रजस्वला प्रारम्भ हुवा और वरदान स्वरूप उन्हें पुरुषों की तुलना में काम सुख ज्यादा अनुभव करने का वरदान मिला| मतलब मासिक धर्म समय स्त्रियां ब्रह्म ह्त्या के पाप ढोती हैं इस वजह से वो कर्म कांड से दूर रखी जाती हैं| 

अब जरा वैज्ञानिक तथ्यों पर नज़र डालते हैं| साफ़ सफाई जरुरी है| मगर अछूत जैसा व्यवहार कहीं से भी उचित नहीं| त्यौहार के समय ना तो बेचारी भाग ले पाती हैं और शर्मिंदगी महसूस होती है वो अलग|
मगर स्त्रियां आज कल घर बाहर सब जगह काम कर रहीं तो इस तरह की सोच बदल तो रही हैं मगर अब अभी इन सबका बहुत असर है और काफी बड़े पैमाने पर है|

जरा सोचिये इतने सारे बंधनों के साथ किसी स्त्री के लिये ३ दिन रहना कितना मुश्किल है|कई जगह नहाना भी वर्जित होता है| इस समय सफाई जरुरी है मगर अंध विश्वास क्या कराता है| बाहर निकलना भी नहीं होता| बस एक कमरे में हीं रहना होता है|
धार्मिक विचारों और ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्रियां पहले दिन चंडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्म घातिनी और तीसरे दिन धोबिन स्वरूपा होती है | इसके पीछे क्या तथ्य है? इसी वजह से पति के साथ एक कमरे में रहना भी वर्जित होता है| मजे की बात तो यह है कि जाप और ध्यान में कोई मनाही नहीं है| मतलब ध्यान और जप से ज्यादा महत्ता कर्म कांड की हो गयी? अगर ब्रह्म ह्त्या वाला कोण देखे तो भी जो स्त्री दूसरों के पाप का वाहन कर रही वो भला अछूत कैसे हो सकती है? जो प्रक्रिया नए जीव के रचना के लिये जरुरी है भला वो प्रक्रिया अछूत कैसे हो सकती हैजरुरत है इन सब से ऊपर उठ कर चीजों को सही चश्मे से देखने की| ढोइए नहीं| बदलिए| और समझ बुझ कर|
स्वाति वल्लभा राज